Gale ke Rog |
कई बार खांसी जुकाम की वजह से या कुछ गलत खान पान से हमारे गले में भयंकर समस्या आ जाती हैं, और समस्या इतनी भयंकर हो जाती हैं के हम कुछ खा भी नहीं सकते. आज हम आपको बताएँगे ऐसी ही गले की भयंकर समस्याएं और किसी भी प्रकार के इन्फेक्शन जैसे टॉन्सिल नया या पुराना, गला बैठना, गले में खराश, गले में कुछ भी निगलने पर होने वाले दर्द का परिचय और निजात पाने के उपाय.
क्या है गले का रोग?
गले के रोग एक प्रकार का श्वसन संबंधी इंफेक्शन है जो ऊपरी वायु मार्ग (श्वसन तंत्र के) के वायरल इंफेक्शन द्वारा होता है. इंफेक्शन के चलते गले के भीतर सूजन हो जाती है. सूजन के कारण सामान्य श्वसन में बाधा उत्पन्न होती है; "भौंकने वाली"खांसी, स्ट्रिडोर (तेज़ घरघराहट की ध्वनि), तथा स्वर बैठना/गला बैठना गले के रोग के मुख्य लक्षण हैं. गले के रोग के लक्षण हल्के, मध्यम या गंभीर हो सकते हैं तथा रात के समय ये बदतर हो जाते हैं. मौखिक स्टीरॉयड की एक खुराक स्थिति का उपचार कर सकती है. कभी-कभार, एपाइनफ्राइन अधिक गंभीर मामलों के लिये उपयोग की जाती है. अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता बेहद कम पड़ती है.गले के रोग का कारण-
जब गले के रोग से संबंधित गंभीर लक्षणों की पहचान हो जाती हैं तो गले के रोग का निदान संकेत तथा लक्षणों के आधार पर होता है. ज्यादातर मामलों में, ब्लड टेस्ट, एक्स-रे और कल्चर आदि की आवश्यकता नहीं पड़ती है. गले के रोग एक सामान्य समस्या है जो लगभग 15 प्रतिशत बच्चों में दिखती है. यह आमतौर पर 6 माह से 5-6 वर्ष की उम्र के बच्चों में होते हैं. गले का रोग किशोरों या वयस्कों में कम ही देखा जाता है.गले के रोग वायरस इंफेक्शन के कारण उत्पन्न होता है. इस रोग को गंभीर लैरिंगोट्रेकाइटिस, स्पैस्मोडिक क्रुप, लैरेन्जियल डिफ्थीरिया, बैक्टीरियल ट्रैन्काइटिस, लैरियेंगोट्राकियोब्रॉन्काइटिस और लैरियेंगोट्रैकोब्रॉन्कोन्यूमोनाइटिस के नाम से भी जानते हैं. इसके पहली दो स्थितियां वायरस से संबंधित है और लक्षण भी मामूली होते हैं. वहीं इसके आखिरी चार स्थितियां बैक्टीरिया से संबंधित हैं जो अधिक गंभीर होती है.
वायरल रोग-
75 प्रतिशत मामलों में पैराइन्फ्लूएंज़ा वायरस, टाइप 1 और 2 गले के रोग के लिये जिम्मेदार है. कभी-कभार अन्य वायरस के कारण भी गले के रोग हो सकता हैं जिनमें खसरा, एडेनोवायरस, इन्फ्लूएंज़ा ए तथा बी और रेस्पिरेटरी सिन्काइटल वायरस (RSV) शामिल हैं. जकड़न वाला गले के रोग और गंभीर लैरिंगोट्रेकाइटिस एक सामान वायरस से होता है, लेकिन इसमें इंफेक्शन के आम लक्षण (जैसे बुखार, गले में खराश तथा बढ़ी हुई श्वेत रक्त कणिकाओं की संख्या) नहीं होते हैं. उपचार तथा उपचार की प्रतिक्रिया समान हैं.बैक्टीरियल (बैक्टीरिया-जनित)-
बैक्टीरिया-जनित गले के रोग को विभिन्न रूपों में बांटा गया है: लैरेन्जियल डिफ्थीरिया, बैक्टीरियल ट्रैन्काइटिस, लैरियेंगोट्राकियोब्रॉन्काइटिस और लैरियेंगोट्रैकोब्रॉन्कोन्यूमोनाइटिस. लैरेन्जियल डिफ्थीरिया का कारक कोराइनेबैक्टीरियम डिप्थीरिया है जबकि बैक्टीरियल ट्रैन्काइटिस, लैरियेंगोट्राकियोब्रॉन्काइटिस और लैरियेंगोट्रैकोब्रॉन्कोन्यूमोनाइटिस का कारण एक आरंभिक वायरस है जिसमें बाद में बैक्टीरिया इंफेक्शन हो जाता है. इसके सबसे सामन्य बैक्टीरिया स्टैफाइलोकॉकस ऑरेनियस, स्ट्रैप्टोकॉकस न्यूमोनिया, हेमोफाइलस इन्फ्लूएंज़ा और मोराक्सेला कैटरहैरिस हैं.गले के रोगों से बचने के उपाय-
- एक गिलास देशी गाय के दूध में एक चौथाई चम्मच हल्दी और एक चम्मच देशी गाय का घी मिलाकर उबालें और रात्रि में सोने से पहले चाय की तरह पिये और सो जाये चाहे तो मिश्री मिला सकते हैं परंतु चीनी कभी नहीं.
- और यदि हाल ही में किसी को टॉन्सिल हुआ है तो उसके लिए केवल इतना ही करे कि रात्रि में देशी गाय के एक गिलास दूध में एक चौथाई चम्मच हल्दी पाउडर को मिलाकर उबालें और रात्रि में सोने से पहले चाय की तरह पिये.
- यदि टॉन्सिल पुराना है तो उसके लिए एक चौथाई चम्मच हल्दी पाउडर को मुह के अंदर जहां तक मुंह खुल सकता है वहीं चम्मच की सहायता से छोड दें और इसे धीरे-धीरे लार के साथ अंदर जाने दें और एक घंटे तक पानी न पिये, अर्थात कुछ भी न खाये पिए. इसे हफ्ते में तीन या चार दिन ये कर सकते हैं दिन में दो बार कीजिये.
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दर्द व गले की सूजन
ज़मादे राहत
बाहरी तौर पर गले पर लगाएं और उस पर पान गर्म करके रखें और ऊपर से रुई हल्की गर्म करके बांध दें।लऊक सपिस्तां ख्यार शम्बरी भी गले की सूजन में लाभ देता है।''' नज़ला व जुकाम' में लिखा गया है।
शरबत तूत स्याह
गले की सूजन और दर्द को दूर करता हैसेव्य मात्रा 25 मिलीलीटरसेवन विधि प्रातः काल व सायंकाल गुनगुने पानी में मिलाकर पिलाएं।गले की फुंसियां
शरबत तूत स्याह,लऊक़ सपिस्तां ख्यार शम्बरी यह सब दवाएं गले की फुंसियों में लाभ देती हैं।तुणि्डकेरी(टांसलाएटिस )
लऊक सपिस्तां,ख्यासर शम्बरी,जमादे राहत ,सदूरी और सुआलीन यह सब औषधियों टांसलाएटिस में भी लाभदायक है।
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